धूप हो बरसात या फिर कड़कड़ाती सर्द.पहुंचाते है हर घर तक अखबार कौन सुनेगा इनका दर्द,संवाद न्यूज उपसम्पादक शिवरतन नामदेव की कलम से

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संवाद न्यूज – आज पूरे विश्व मे कोरोना वायरस के चलते हाहॉकार मचा हुआ हैं, भारत भी इससे अछूता नही है यहॉ भी कई मौते हो चुकी है,हजारो लोग इस महामारी की चपेट मे है,पूरे भारत मे लाक डाउन है आवागवन बंद है,लोग अपनी जान बचाने के लिए अपने आप को अपने-अपने घरो मे लाकडाउन कर लिया है,ऐसे मे जिसकी जो जिम्मेदारी हैं,बाखूबी निभा रहे है,स्वास्थ्य विभाग का पूरा अमला अपनी चिंता न करके अपने घर परिवार को छोड़कर वायरस से पीडि़त की सेवा मे लगे हुए है,पुलिस भी अपना फर्ज बाखूबी निभा रही है।जैसा कि आप सभी को विदित है कि मीडिया से जुड़े लोग भी देश मे आयी इस विषम परिस्थिति मे अपने आप को झोक रखा है,सबसे विषम और विडम्बना पूर्ण स्थिति अखबार को बाटने वाले और ग्रामीण क्षेत्र के अवैतनिक सवांद दाताओ की जिन्हे हम हॉकर कहते है, उनकी है,दो वक्त की रोटी जुटाना कहे या फिर समाज और देश की सेवा,कुछ भी कहे हम इनके जज्बे को शब्दो मे बयां नही कर सकते है,धूप हो बरसात या कड़कड़ाती सर्द पहुचाते है हर घर तक अखबार कौन सुनेगा इनका दर्द,लेकिन इनका भी परिवार है,जो इनके बाद दो वक्त की रोटी का मोहताज हो जायेगा,ऐसे मे आखिर हमारी सरकारो का ध्यान इनकी ओर क्यो नही गया,स्वास्थ्य विभाग एंव पुलिस विभाग को तो सरकारी नौकरी मिली हुई है,इन्हे मोटा वेतन भी मिलता है,उसके बावजूद भी सरकार ने इनके लिए बीमा और अन्य सुविधाओ की तत्काल घोषणा कर दिया,लेकिन इन हॉकरो के लिए जिन्हे इनके मीडिया संस्थानो के द्वारा वेतन भी नही दिया जाता है,इन्हे केवल कुछ परसेंट कमीशन मिलता है, जिसके सहारे इनके परिवार का भरण पोषण होता है।लाकडाउन मे मीडिया के नाम पर इन्हे छूट मिली है,हर घर तक अखबार पहुचाने के लिए, इन्हे नही मालूम की किस ग्राहक को कोरोना वायरस है,इन्हे तो ज्यादा से ज्यादा अखबार बेचना है,ऐसे मे यह घातक बीमारी कब और कहॉ इन्हे अपनी चपेट मे ले ले,इसकी चिन्ता किये बिन पापी पेट के सवाल पर ए हॉकर हर दिन हर घर तक अखबार पहुचा रहे है,लेकिन न ही प्रदेश सरकार और न ही केन्द्र सरकार के घोषणा मे इनके लिए कोई योजना लाई गई,जबकि ऐसे समय मे इन्हे बीमा और कमीशन के अलावा अलग से परिश्रामिक की घोषणा सरकार को करनी चाहिए। हमने देखा है कि बीस साल-पच्चीस साल से अखबार बांट रहे हॉकर सिर्फ किसी तरह अपने परिवार का भरण पोषण ही कर पा रहे,आज तक इनके परिवार के लिए किसी भी प्रदेश की सरकार ने गरीबो को बाटां जाने वाले खाद्यान्न तक देने की नही सोचा। देखने मे आया है कि मीडिया सस्थांने खूब फल फूल रहे है,सस्थांनो के आफिस मे काम करने वाले पत्रकारो को सरकारे अधिमान्यता भी देती है,लेकिन एं हॉकर उससे भी वचिंत है,जबकि अखबार को चलाने के लिए सबसे बड़ी भूमिका इन्ही हॉकरो की होती है,यदि ए हॉकर एक माह का लॉकडाउन कर दे तो फिर सारी प्रिंन्ट मीडिया धरी की धरी रह जायेगी। मुझे याद है एक बार उत्तर प्रदेश मे पुलिस ने किसी हॉकर को मार दिया था तो उत्तरप्रदेश के सभी हॉकर लॉकडाउन कर दिये थे,जिससे पूरे उत्तरप्रदेश मे हॉहाकार मच गया था,अत एव सरकार एंव मीडिया सस्थांनो को भी इन हॉकरो के बारे मे सोचना होगा।समाज इन्हे हॉकर कह कर हसी भी उड़ाता है लेकिन ये समाज के और सरकार के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है,समाज को चाहिए की इन्हे हॉकर कह कर इनके सेवा भाव को अपमानित ना करे बल्कि इन्हे खबर सेनानी कहकर इनका मनोबल बढ़ाए।हम इनके लिए इतना ही कह सकते है कि, ‘‘धूप हो या बरसात हो या कड़काड़ाती सर्द पहुचाते है,हर घर तक अखबार कौन सुनेगा इनका दर्द‘‘।

शिवरतन नामदेव, उपसम्पादक संवाद न्यूज

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