नामदेव समाज के आराध्य संत शिरोमणि श्री नामदेव जी की जयंती पर शिवरतन नामदेव की विशेष रिपोर्ट
समाज के आराध्य संत शिरोमणि श्री नामदेव जी की जयंती पर शिवरतन नामदेव की विशेष रिपोर्ट कटरा- महाराष्ट्र्र से लेकर पंजाब तक उत्तर भारत में हरिनाम की वर्शा करनें बाले संत नामदेव जी का जन्म भक्त कबीर दास जी से 130 वर्श पूर्व 1270 में महाराष्ट्र के जिला सतारा के नरसी बामनी गांव मे कार्तिक शुक्ल एकादसी कों हुआ था उनके पिता का नाम दामाशेढी औंर माता का नाम गोणाई देवी था,श्री नामदेव जी का परिवार भगवान बिठल का परम भक्त था जिस कारण से जिस तरह से कोख में ही अर्जुन पु़त्र अभिमन्यु नें युद्ध का ज्ञान प्रात किया था उसी तरह सें संत नामदेव जी भी कोख से ही भक्ति भाव सीख कर इस धरती में जन्म लिये थें, उनकें तन मन मे भक्ति का संचरण बालपन सें प्रवाहित हो रहा था,जब संत नामदेव लगभग 5 वर्श के थे एक दिन उनकें पिता बाहर गांव की यात्रा पर गयें हुए थें तब उनकी माता जी ने बालक नामदेव कों दूध दिया औंर कहा कि बेटा यह दूध भगवान बिठ्ठल कों भोग में चढा कर आओं बालक नामदेव मंदिर में जाकर भगवान बिठ्ठल कें मूर्ति कें सामने दूध रख कर भगवान कों पीने के लियें अनुनय विनय करने लगे मंदिर में उपस्थित लोगो नें बालक नामदेव से कहा कि बेटा यह मूर्ति है दूध कैसे पियेगी, परंतु पांच वर्षीय बालक को कहां पता था कि मूर्ति दूध नही पीती, मूर्ति को सिर्फ भावनात्मक भोग लगाया जाता हैं।वहॉ पर उपस्थित लोंग बालक नामदेव कों अज्ञानी मान कर वहॉ सें जब चलें गये तब बालक नामदेव रो-रो कर कहने लगे प्रभू दूध पी लीजिये नहीं तों मै यही प्राण त्याग दूंगा।तब बालक का भोला भाव देखकर भगवान विठ्ठल मनुष्य रूप में प्रगट हों कर स्वयं दूध पीकर नामदेव को भी दूध पिलाया तभी से बालक नामदेव कों विठ्ठल नाम की धुन लग गई औंर वें दिन रात विठ्ठल नाम की रट लगाए रहतें थें।भक्त नामदेव जब बडें हुए तब उन्होने महाराश्ट्र कें प्रसि़द्ध संत श्री ज्ञानेश्वर को अपना गुरू बनाया। जहॉ एक ओर संत श्री ज्ञानेश्वर जी महराज ने ब्रहम विद्या कों लोक सुलभ बनाकर उसका महाराष्ट्र में प्रचार प्रसार किया वही दूसरी तरफ संत शिरोमणि श्री नामदेव जी महाराष्ट्र लेकर पंजाब और उतर भारत में हरिनाम की वर्षा किया। विठ्ठल भक्तिं उन्हें बिरासत में मिली उनका सम्पूर्ण जीवन मानव कल्याण कें लिये समर्पित रहा।संत नामदेव जी नें मराठी और पंजावी में पद्य रचना किया उनकें प्रभु भक्ति भरे भाव एवं विचारों का प्रभाव आज भी पंजाव कें लोंगों पर हैं।भक्त नामदेव जी महा प्रयाण के तीन सौं साल बाद गुरू श्री अर्जन देव जी नें उनकें पद्य रचनाओं का सकंलन श्री गुरूग्रंथ साहिब में किया,श्री गुरूग्रंथ साहिब में उनकें 61पद 3 श्लोक 18 रागों का संकलन हैं,वास्तव में श्री गुरूग्रंथ साहिब में नामदेव जी की बाणी अमृत का वह निरंतर बहता हुआ झरना हैं जिससें सम्पूर्ण मानवता कों पवित्रता प्रदान करने का सामर्थ है,मुखबानी नामक ग्रंथ में भी उनकी कई रचनांए संग्रहीत हैं उनके जीवन के एक रोचक प्रंसग के अनुसार एक बार उन्होने भोजन कें लियें चार रोटिया बनाई खाने की तैयारी कर ही रहे थें तभी एक कुत्ता आकर रोंटिया लेकर भागने लगा तो नामदेव जी उसके पीछे घी का कटोरा लेकर दौडंते हुए बोले हें भागवान रूखी मत खाओं साथ में घी ले लों। ऐसा ही एक औंर अदभुत प्रसंग एक बार श्री नामदेव जी भगवत भजन में लीन थें तभी उनकी कुटिया में आग लग गई गांव कें लोग दौडकर आये श्री नामदेव जी से बोले आपके कुटिया में आग लगी हैं नामदेव नें देखा आग की लपटे आसमान को छू रही थी उन्होने कहा धन्य है प्रभू आज आपकी इछा इस रूप में दर्षन देने की थी वो कुटिया के पास गये कुछ सामान लोगो नें बचा लिया था उसको भी आग के हवाले करतें हुए बोले जब हमारे प्रभू इस रुप मे आये है,तो फिर कुछ बचना व्यर्थ है, भगवान विश्णु जिनकी पूजा जिनका नाम रटन विठ्ठल के रुप मे संत नामदेव रात-दिन करते थे,वो नामदेव की निर्मल भक्ति देखकर मजदूर का रुप धारण कर के उनकी कुटिया बनाने चले तो लक्ष्मी जी भी साथ मे चल दिया भगवान मजदूर के रुप मे नामदेव के पास आकर बोले नामदेव जी आप की कुटिया जल गई है,मै और मेरी पत्नी आपकी कुटिया बनाने आये है,नामदेव जी ने कहा कि मेरे पास पैसे नही है,बिना पैसे के कोई किसी का काम कैसे करेगा,भगवान बोले जिस तरह से आप बिना पैसे के विठ्ठल सेवा करते है,वैसे ही मै भी आपकी कुटिया बना कर आपकी सेवा करुगा,नामदेव जी बोले जैसी आपकी मर्जी मजदूर रुप धारण किए भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी ने इतनी सुन्दर कुटिया बनाया की कई वर्षों तक लोग नामदेव जी के पास उस कुटिया को बनाने वाले मजदूर का पता पूछने आते थे,ऐसे ही कई प्रसंग भक्त नामदेव जी और विठ्ठल भगवान के बीच के है,जिनका वर्णन इस लेख मे सम्भव नही है, पर धन्य है,नामदेव समाज के लोग जिनके कुल मे संत शिरोमणि नामदेव जी का जन्म हुआ था, मै अकिंचन शिवरतन नामदेव सम्पूर्ण नामदेव समाज एवं सतं शिरोमणि नामदेव जी को उनकी जयतीं पर बारम्बर प्रणाम करता हू।