सदियों की गुलामी के बाद 1947 में भारत आजाद हुआ तो लगा कि अब जनता खुले में सांस ले पाएगी, स्वतंत्र रूप से अपना विकास का सकेगी। ऐसा हुआ भी, देश के बहुत से क्षेत्र आजादी के बाद तीव्र गति से विकसित हुए तो वहां का जनमानस भी उन्नति को प्राप्त हुआ। उसे एक तरफ आधुनिक सुख सुविधाएं प्राप्त हुई तो दूसरी तरफ हर हाथ को काम मिला जिससे वे सुख समृद्धि की ओर अग्रसर हुए । हमारे पड़ोसी जिले सतना,छतरपुर एवं कटनी इसका ज्वलंत उदाहरण है,किंतु पन्ना जो पूर्व में एक प्रतिष्ठित रियासत भी थी और जहां विश्व का सबसे उत्तम क्वालिटी का हीरा निकलता है, की स्थिति ठीक इसके उलट है , यहां विकास की जगह विनाश हुआ और यहां की जनता को बेरोजगारी एवं गरीबी के दलदल में धकेल दिया गया।
आजादी के बाद से ही यहां अधिकांशतः सामंतवादी सोच से प्रेरित लोगों का वर्चस्व रहा है और कहा जाता है कि इन्हें जानवरों से कुछ विशेष ही प्रेम था जिसके कारण यहां इन्होंने नेशनल पार्क स्थापित करा दिया और जिसने पन्ना के विकास को अवरुद्ध कर दिया। पन्ना जिला चूँकि एक पहाड़ी क्षेत्र है और यहां के लोगों के रोजगार का प्रमुख साधन हीरा और पत्थर का उत्खनन है। किंतु जंगली जानवरों की सुरक्षा एवं पर्यावरण को आधार बनाकर शासन द्वारा इन्हें बंद करा दिया गया जिससे यहां के लोगों का रोजगार छिन गया और अर्थव्यवस्था भी चौपट हो गई। परिणाम स्वरूप इनमें से कुछ लोग मजदूरी आदि के लिए देश के महानगरों की ओर पलायन कर गए तो कुछ लोग जुआ सट्टा जैसी गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त हो गए। डिप्रेशन जोकि एक गंभीर बीमारी है जो सीधे तौर पर यहां उपस्थित बेरोजगारी, गरीबी और नेताओं तथा शासन-प्रशासन की गैर जिम्मेदाराना नीतियों का परिणाम है,पन्ना के युवाओं में बहुतायत मे पायी जाती है। और यही कारण है कि युवाओं द्वारा आत्महत्या जैसी घटनाएं यहां अक्सर होती रहती है ।
वैसे पन्ना की जनता का नेशनल पार्क और जंगल से कोई विरोध नहीं है,और वैसे भी यह हमारे पर्यावरण के लिए आवश्यक है किंतु पर्यावरण और जानवरों की सुरक्षा के लिए इंसानों की बलि कहां तक उचित है। पन्ना के जनप्रतिनिधियों, प्रशासनिक अधिकारियों को इस पर विचार करना चाहिए । कब तक इनकी खातिर पन्ना की जनता का शोषण होता रहेगा । पन्ना के लोग भी देश के अन्य लोगों की तरह सरकार को टैक्स देते हैं तो दूसरी तरफ पन्ना स्थित हीरा खदान से प्रतिवर्ष करोड़ों की रॉयल्टी सरकार को प्राप्त होती है।
पन्ना की इस दयनीय स्थिति में सुधार की अत्यंत आवश्यकता है जिस पर क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को गंभीरता से चिंतन करना होगा। पन्ना के प्रशासन, वन विभाग एवं नेशनल पार्क के अधिकारी जो यहां के लोगों की दयनीय स्थिति से वाकिफ है , को एक मिसाल कायम करते हुए आगे आकर अपने स्तर पर पहल करनी चाहिए। पन्ना में ऐसे उद्योग ,जो पर्यावरण के अनुकूल हो जैसे सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट , उच्च शिक्षा संस्थान,कृषि से संबंधित उद्योग आदि स्थापित किए जा सकते हैं, जिससे यहां के लोगों को रोजगार प्राप्त होगा और यहां की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी । सुनने में आया है कि खजुराहो लोकसभा के सांसद विष्णुदत्त शर्मा के प्रयासों के परिणाम स्वरूप केंद्र सरकार से पन्ना के लिए ईएसआई अस्पताल जिसे हम मिनी मेडिकल कॉलेज कह सकते हैं, स्वीकृत हो गया है और केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश सरकार से प्रस्ताव मांगा है जो कि अभी तक नहीं भेजा गया है । इस पर पन्ना के जनप्रतिनिधियों एवं नेताओं को तुरंत सक्रिय होने की आवश्यकता है क्योंकि इसके आने से एक तरफ पन्ना के लोगों को रोजगार प्राप्त होगा तो दूसरी तरफ आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं का लाभ भी मिल सकेगा।
क्या देश अन्य लोगों की तरह पन्ना की जनता को भी सुख एवं समृद्धि से जीने का अधिकार नहीं है ? यदि है ! तो पन्ना के जनप्रतिनिधियों और शासन-प्रशासन को इसपर गंभीरता से चिंतन और प्रयास करने की अत्यंत आवश्यकता है।
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