मासूम बच्चों की ज़िंदगी से खिलवाड़ कर रहे हैं निजी विद्यालय संचालक
भारी भरकम रकम बसूलने के बाद भी नहीं कर रहे उचित व्यवस्था
रायपुर ब्लॉक अन्तर्गत ग्राम मनिकवार में संचालित निजी स्कूल जहां न पार्किंग व्यवस्था है न खेलने का मैदान।
चंद कमरों में चल रही है हाई स्कूल विद्यालय
स्कूल वाहन में भूसे की तरह भर रहे बच्चे
अधिकारी भी बिना जांच कर दे रहे हाई स्कूलों की मान्यता ।
इंग्लिश मीडियम स्कूलों में स्टेशनरी की दुकानों पर है अनुबंध । फिर भी स्कूल संचालक कर रहे मनमानीऑटो / वैन में क्षमता से अधिक भरकर ले जाते हैं बच्चे । शिक्षा आज के दौर में लोगों ने धंधा बना लिया है। लोगों को कोई रोजगार नहीं मिलता है तो वह तत्काल स्कूल खोल लेता है। वहीं ब्लॉक शिक्षा अधिकारी बिना जांच किए हुए हाई स्कूलों को मान्यता दे रहे हैं। अधिकारियों द्वारा मौके का निरीक्षण नहीं किया जाता है। यदि मौके पर जाकर देखा जाए तो ना ही स्कूलों में पार्किंग ना ही खेल का मैदान ना ही खेल सामग्री है निजी/प्राइवेट स्कूलों में संचालक नियमों का पालन नहीं कर रहे है।
इंग्लिश मीडियम स्कूलों में स्टेशनरी की दुकानों पर है अनुबंध
निजी स्कूलों में किताबों के कोर्स और स्कूलों की मनचाहे स्टेशनरी एवं की दुकानों पर अनुबंध कर दुकानदारों की मनमानी रेट पर पालकों को खरीदनी पड़ रही हैं। प्रचार-प्रसार से पालक गुमराह हो रहे हैं। मनिकवार में संचालित निजी स्कूल संचालकों द्वारा सीबीएसई पैटर्न अंग्रेजी माध्यम /एमपी बोर्ड हिंदी माध्यम के बच्चों को मनोरंजन एवं खेल की सुविधाएं व अन्य तरह से गुमराह किया जा रहा है। मनिकवार के निजी स्कूलों में चल रहे बच्चों को लाने ले जाने वाले अधिकांश वाहन बिना परिवहन विभाग के रजिस्ट्रेशन के ही चलाए जा रहे हैं।
ऑटो / वैन में क्षमता से अधिक भरकर ले जाते हैं बच्चे
- स्कूल संचालक बच्चों को लाने के लिए बस्तियों में वेन,ऑटो भेजते हैं, वाहन में न तो स्कूल वाहन लिखा रहता हैं न ही वाहन में पीला कलर किया रहता हैं न ही रफ्तार में संयम रहता है लेकिन एक वैन,ऑटो में 20 से 25 बच्चे तक बैठाए जा रहे हैं। जिसमें सीट से ऊपर भरकर शेष बच्चों को खड़ा कर दिया जाता है तथा कुछ बच्चों को पीछे झूलने में विवश कर दिया जाता है जिसमें बच्चे अपनी जान जोखिम में डालकर प्रत्येक दिन घर पहुंचते हैं जिससे बच्चों को स्कूल तक पहुंचने में पसीना तक छूट जाता है। यह तमाशा बच्चों के आते समय और जाते समय स्कूलों के सामने देखा जा सकता है। जिसमें स्कूल के संचालकों को बच्चों की जान की कोई परवाह नहीं है।