क्या मंदिर में है मरकटमणि जिससे होती है मनोकामनाये पूर्ण?
खजुराहो – खजुराहो के मंदिर वेसे तो दुनियाँ भर में धार्मिक/आध्यात्मिक/सांस्कृतिक और पर्यटन के लिये खजुराहो के मंदिर विश्व में प्रसिद्ध हैं, किन्तु श्री श्री1008 श्री भगवान शिव को समर्पित मतंगेश्वर मंदिर, हिंदुओं की आस्था का बड़ा केंद्र है। खजुराहो के प्रसिद्ध मतंगेश्वर महादेव मंदिर में विगत 52 वर्षों से शिवाभिषेक/शिव विवाह करा चुके पुजारी प० श्री सुरेन्द्र कुमार गौतम उर्फ़ नन्नाई महाराज ने बताया कि किवदंती अनुसार यही एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ आदिकाल से निरंतर पूजा होती चली आ रही है। चंदेल राजाओं द्वारा नवीं सदी में बनाए गए इस मंदिर के शिवलिंग के नीचे एक ऐसी मणि है जो हर मनोकामना पूरी करती है। कहा जाता है कि कभी यहाँ भगवान श्रीराम ने भी पूजा की थी। शिवरात्रि के दिन यहाँ शिवभक्तों का ताँता लगा रहता है। खजुराहो के सभी मंदिरों में सबसे ऊँची जगती पर बने इस मंदिर में जो भी आता है वो भक्ति में डूब जाता है, फिर चाहे वो हिंदुस्तानी हो या विदेशी। कहते हैं कि यह शिवलिंग किसी ने बनवाया नहीं बल्कि स्वयंभू शिवलिंग है। १८ फुट की मूर्ति जितनी ऊपर है उतनी ही नीचे भी है। यह मूर्ति प्रतिवर्ष तिल के बराबर बढती भी है।
मतंगऋषि करते थे पूजा :
मान्यता है कि मतंगऋषि इस शिवलिंग की पूजा करते थे। इसलिए स्वयं भगवान श्रीराम ने मतंगऋषि के नाम पर इसका नाम मतंगेश्वर रखा था मरकटमणि
चंदेल राजाओं द्वारा स्थापित साँस्कृतिक नगरी खजुराहो के चंदेल राजाओं को मरकट मणि चंद्रवंशी होने के कारण विरासत में मिली थी। चंदेल राजाओं ने इस मणि की सुरक्षा और नियमित पूजा अर्चना के लिए इसे शिवलिंग के नीचे रखवा दिया था।
लोक मान्यता है कि जो भी आदमी मरकटमणि की पूजा करता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है।
इंद्र ने मरकटमणि युधिष्ठिर को दी थी। आगे जाकर यह चंदेल राजाओं यशोवर्मन, चंद्रवर्मन के पास रही। उन्होंने उसकी सुरक्षा व पूजा अर्चना के लिए लिए इसे शिवलिंग के नीचे स्थापित करा दिया था।
लोगों की आस्थाएं है तभी तो यहाँ प्रतिबर्ष शिवरात्रि व अमावस्या पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु आकर भगवान मतंगेश्वर का जलाभिषेक करते हैं। पीढियों से यहाँ पुजारी का दायित्व निभाने वाले बाबूलाल गौतम भक्तों के भाव काफी नजदीकी से देख रहे है।
वे बताते हैं कि किस तरह लोग यहाँ आकर अपनी मनोकामना व्यक्त करते है। लोग उल्टे हाथे लगाकर अपनी मनोकामना व्यक्त करते है। मनोकामना पूर्ण होने के बाद सीधे हाथे लगाते है। तो आपकी मनोकामना पूर्ण होगी।।
ऐतिहासिक झरोखे से- खजुराहो के मंदिरों में पवित्रतम माना जाने वाले, इस मंदिर की वर्तमान में भी पूजा-अर्चना की जाती है। यह अलग बात है कि यह मंदिर इतिहास का ही हिस्सा है, लेकिन यह आज भी हमारे जीवन से जुड़ा हुआ है। इसका प्रवेश द्वार पूर्वी ओर है। यह मंदिर अधिक अलंकृत नहीं है। साधारण से दिखाई देने वाले इस मंदिर का शिखर बहुमंजिला है। इसका निर्माणकाल ९५०- १००२ ई. सन् के बीच का है। इसके गर्भगृह में वृहदाकार शिवलिंग है, जो ८’ ४ ऊँचा है और ३’८ घेरे वाला है। इस शिवलिंग को मृत्युंजय महादेव के नाम से भी जाना जाता है।
त्रिरथ प्रकृति का यह मंदिर भद्र छज्जों वाला है। इसकी छत बहुमंजिली तथा पिरामिड आकार की है। इसकी जगती इतनी ऊँची है कि अधिष्ठान तक आने के लिए अनेक सीढियां चढ़नी पड़ती हैं। मंदिर खार- पत्थर से बनाया गया है। भद्रों पर सुंदर रथिकाएँ हैं और उनके ऊपरी भाग पर उद्गम है। इसका कक्षासन्न भी बड़ा है। इसके अंदर देव प्रतिमाएँ भी कम संख्या में है।
गर्भगृह सभाकक्ष में वतायन छज्जों से युक्त है। इसका कक्ष वर्गाकार है। मध्यबंध अत्यंत साधारण, मगर विशेष है। इसकी ऊँचाई को सादी पट्टियों से तीन भागों में बाँटा गया है। स्तंभों का ऊपरी भाग कहीं- कहीं बेलबूटों से सजाया गया है। यह एक मात्र मंदिर है, जहाँ लगातार पूजा- अर्चना की जा रही है।
खजुराहो के मंदिरों में पवित्रतम माना जाने वाले, इस मंदिर की वर्तमान में भी पूजा-अर्चना की जाती है।
अतः इस मंदिर का धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व अक्षुण्ण है।।