“हर पीड़ित अपना है. सबके लिए करना है.”- डॉ भागवत
“ये कार्य न नाम के लिए है,न स्वार्थ-भय या मजबूरी के कारण है. हम कार्य कर रहे हैं क्योंकि ये अपना समाज है. हमारे कार्य का आधार आत्मीयता है. मानवता है. भारत हमारा आधार है. हर पीड़ित अपना है. सबके लिए करना है.” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत ने 26 अप्रैल, शाम 5 बजे सारे देश को ऑनलाइन संदेश दिया. rssorg नामक यूट्यूब चैनल और फेसबुक पेज से प्रसारित किए गए इस उद्बोधन को अनेक न्यूज़चैनलों ने भी दिखाया. कार्यक्रम का शीर्षक था ‘वर्तमान परिदृश्य और हमारी भूमिका.’ शब्दों के उपयोग के आधार पर डॉ भागवत के इस संबोधन का सार निकाला जाए तो उन्होंने समाज, सबको साथ लेकर चलना और अपनत्व आदि (या समानार्थी) शब्दों का बार-बार उपयोग किया.
प्रचंड मात्रा में सेवा कार्य कर रहे हैं स्वयंसेवक
संघ सेवा के लिए जाना जाता है. लोकनायक जयप्रकाश नारायण और लेखक सरदार खुशवंत सिंह समेत सामाजिक जीवन की अनेक हस्तियाँ ये कह चुकी हैं. हर आपदा में, चाहे वो बाढ़ हो, भूकंप हो, अकाल, युद्ध या महामारी हो, पिछले 95 सालों से संघ के स्वयंसेवक सेवा की पहली पंक्ति में खड़े मिलते हैं. अनुशासन का पालन करते हुए राहत पहुंचाते हैं. इस संकट की घड़ी में पौने तीन लाख के लगभग संघ के स्वयंसेवक राहत कार्य में जुटे हैं.16 अप्रैल तक के आँकड़े के अनुसार 29 लाख 60 हजार ज़रूरतमंद परिवारों तक राशन स्वयंसेवकों ने पहुंचाया. दो करोड़ के लगभग भोजन पैकेट वितरित किए, 12 हजार के लगभग रक्तदान किया गया.लॉक डाउन में फँस गए 3 लाख 51 हजार प्रवासियों को भी सहायता पहुँचाई. जनजातीय क्षेत्रों, घुमंतू जातियों, असहाय वृद्धों, छात्रावासों में फँसे छात्रों के लिए भी स्वयंसेवक काम कर रहे हैं. गौग्रास तथा अन्य पशु पक्षियों के लिए भी बड़ी मात्रा में स्वयंसेवक कार्य कर रहे हैं.
कोरोना महामारी से लड़ रहे समाज और सेवा कार्य में लगे संघ के स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए डॉ भागवत ने कहा कि “हमें घर में बंद रहकर इस लड़ाई को लड़ना है. घर में रहकर जितना कर सकते हैं करना है. लॉकडाउन के बावजूद जैसे जीवन चल रहा है, वैसे संघ का कार्य भी चल रहा है. परिस्थति के हिसाब से ढलना संघ कार्य का विशिष्ट पहलू है. सेवा कार्य चल रहा है. प्रचंड मात्रा में सेवा कार्य संघ के स्वयंसेवक कर रहे हैं. यही वास्तविक संघ कार्य है. देश-समाज- मानवता के लिए ही तो संघ है.
एकांत में आत्मसाधना और सामाजिक जीवन में परोपकार ये भारत का आदर्श है. सबके हित का सोचना ही महान आत्माओं का संदेश है.हमें उन भिक्खू का स्मरण करना चाहिए जिन्होंने भगवान् बुद्ध की जीवनी प्रकाशित करने के धन संग्रह किया. लोगों ने उत्साह के साथ धन दिया, लेकिन वहाँ भूकंप आ गया. उन संत ने ग्रंथ प्रकाशन के लिए एकत्र सारा धन राहत कार्य में लगा दिया. हालात सामान्य होने पर ग्रंथ प्रकाशन के लिए धन संकलन शुरू हुआ, लेकिन बाढ़ आ गई तो एक बार फिर सारा धन राहत कार्य के लिए उन संत ने दे दिया. तीसरी बार संकलन हुआ. जीवनी छपी तो उसमें उन संत ने लिखवाया कि ये भगवान् बुद्ध की जीवनी का तीसरी बार प्रकाशन हुआ है. यही तो भगवान बुद्ध का संदेश है.
उत्साह बना रहना चाहिए
डॉ भागवत ने बतलाया कि एक व्यक्ति मैगनीज़ की एक बेकार खदान को खरीदा, जिसे अनेक कंपनियां निराश होकर छोड़ चुकी थीं. लेकिन जब उसने खुदाई शुरू की तो मात्र 3 फुट खोदने पर ही मैगनीज़ का भंडार मिल गया. बाद में उस व्यक्ति ने एक रेलवे कंपनी खड़ी की, और एक किताब लिखी. शीर्षक था ‘सफलता और असफलता के बीच का अंतर 3 फुट है.’ इस किताब का जिक्र करते हुए संघ के सरसंघचालक ने कहा कि ऐसा सातत्य अपने प्रयासों में चाहिए. परिस्थित विकट है लेकिन भयमुक्त होकर ठंडे दिमाग से आत्मविश्वास के साथ लगातार काम करना है. बीमारी नयी है. उसके बारे में धीरे धीरे विज्ञान को पता चल रहा है. जब तक समाधान निकलता है, तब तक लगातार सेवा कार्य करना है. क्रम टूटना नहीं चाहिए. निराशा नहीं आनी चाहिए. उत्साह बना रहना चाहिए.
जब तक संकट है, लड़ते रहेंगे.
‘कितने दिन -कितने दिन’ ऐसा पूछने से नहीं चलेगा. जब तक आवश्यक होगा हम काम करते रहेंगे. महात्मा विदुर ने सफलता चाहने वाले व्यक्ति को 6 बातों से सावधान किया है. निद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध, आलस्य, दीर्घसूत्रता. दीर्घसूत्रता अर्थात योजना ही बनाते रह जाना. संकट आने पर भारत सरकार ने तत्परता दिखाई. तत्काल उचित निर्णय लिया और समाज के बहुत बड़े हिस्से ने उसका तत्परता से पालन किया. भारत ने दुनिया के भले के लिए दवाओं के निर्यात पर लगा प्रतिबंध हटाकर सारी दुनिया को राहत पहुँचाने का प्रयास किया है.
भागवत जी ने कहा कि जहाँ नागरिक अनुशासन का पालन हो रहा है वहाँ कोरोना का नियंत्रण में है.डॉ अंबेडकर और भगिनी निवेदिता ने नागरिक अनुशासन के पालन को राष्ट्रीय कर्तव्य बताया है. अनुशासन में चलते हुए भी लचीलापन रखना पड़ता है. दृष्टि की बात है. लोगों की आदतों में बदलाव की मनोभूमिका तैयार है. लोगों का जीवन गढ़ते चलना है.
कोरोना का संकट प्रारंभ होते ही संघ ने जून माह के अंत तक अपने सारे सामूहिक कार्य रोक दिए. कोरोना को लेकर कुछ लोग डरते हैं कि हमें क्वारंटाइन में दाल देंगे इसलिए बीमारी छिपाते हैं. कुछ को लगता कि हमें रोकने के लिए लॉकडाउन किया जा रहा है. ऐसे भ्रमों का निवारण करने की आवश्यकता है. भ्रमों के कारण भय, क्रोध और फिर अतिवादिता बढ़ती है. सब जगह कुछ गड़बड़ लोग रहते हैं.कुछ व्यक्तियों के दोष के कारण सारे समूह को दोषी मानकर दूरी बनाना ठीक नहीं. द्वेष-क्रोध को भड़काने वाले लोग घात लगाए बैठे हैं. भारत तेरे टुकड़े होंगे बोलने वाले भी अवसर की तलाश में हैं. हमें प्रतिक्रिया से बचना है. भारत का 130 करोड़ समाज अपना है, इस बात का ध्यान रखना चाहिए. भय या क्रोधवश होने वाले कृत्यों को समाज के जिम्मेदार लोगों को रोकना होगा. पालघर में दो संतों की हत्या दुखद है. संत मानवमात्र का उपकार करने वाले लोग हैं. 28 अप्रैल को हम उनको श्रद्धांजलि देंगे.
भावी चुनौतियां
आने वाली चुनौतियों की चर्चा करते हुए डॉ भागवत ने कहा कि लॉकडाउन के बाद जो अव्यवस्था फ़ैली है उसे ठीक करने में समय लगेगा. फिजिकल डिस्टेंस तब भी करना पडेगा. विद्यालयों में भी इसका ध्यान रखना पडेगा और बाजार – उद्योग-व्यवसाय में भी. तब राहत कार्य भले ही न हों, पर ये तो करवाना ही पडेगा. समाज के लोगों को एकत्रित करके ये करना पडेगा. स्वच्छ-स्वस्थ रहने का आचरण- संस्कार समाज में जाए. शरीर का प्रतिरोधी तंत्र बढे, इसके लिए कुटुंब स्तर तक ये आचरण लाना पडेगा.
ये संकट कुछ सिखा भी रहा है. प्रधानमंत्री ने कहा है कि ये संकट हमें स्वावलंबन की सीख दे रहा है. राष्ट्र पुनर्निर्माण के अगले चरण की आवश्यकता है. लोग गाँव चले गए हैं, सब लौटेंगे क्या? सबको व्यवसाय मिल सकेगा क्या? गाँव में जो रह जाएँगे उनको वहीँ जीविका उपलब्ध करवाने की चुनौती होगी. कम ऊर्जा खपत वाला, पर्यावरण मूलक , आधुनिक विज्ञान के आधार पर नया तंत्र खड़ा करना पड़ेगा. हमारी परंपरा में जो आज के लिए ठीक है, उसे भी अपनाना होगा.
शासन-प्रशासन तो अपना काम करेंगे ही, लेकिन समाज को भी कंधे से कंधा मिलाकर काम करना पडेगा. हम अधिक से अधिक मात्रा में स्वदेशी का उपयोग करें साथ ही स्वदेशी उत्पाद उत्कृष्ट हों, ऐसा प्रयास करने की आवश्यकता है.
पर्यावरण बहुत मात्रा में शुद्ध हो गया. लॉकडाउन के बाद हम फिर से अपना जीवन शुरू करेंगे तो सोचना पडेगा कि कैसे पर्यावरण को कम से कम हानि हो. पानी और वृक्षों का संरक्षण-संवर्धन करना होगा. प्लास्टिक निषेध, रासायनिक खेती की आदत छोड़कर जैविक खेत को अपनाना होगा. घर में रहने का अनुभव अच्छा रहा. कुटुंब में संवाद बढ़ा है ये सबके ध्यान में आया है. ये संवाद बना रहे. समाज भी एक कुटुंब है ये इस संकट ने हमें स्मरण दिलाया है. इस संकट को अवसर बनाकर एक नए भारत का उत्थान करना है. संघ के स्वयंसेवक ऐसा सोचते ही हैं सारा समाज ऐसा बने, इस प्रकार से कार्य करने की आवश्यकता है. इस कार्यक्रम को सैकड़ों फेसबुक और यूट्यूब अकाउंट से लाइव किया गया. संघ के अधिकृत फेसबुक पृष्ठ पर ही पहले 1 घंटे में इसे पौने पाँच लाख लोग देख चुके थे. टीवी चैनलों के माध्यम से भी इसे करोड़ों लोगों ने देखा.