नई दिल्ली (संवाद न्यूज डेस्क) नेपाल में सुनहरे पीले रंग का कछुआ इस वक्त चर्चा का केंद्र बना हुआ है। पीले रंग का कछुआ अपने आप में एक विलक्षण प्रजाति का कछुआ होता है। नेपाल में पीले रंग के कछुए को पवित्र माना जाता है, यही वजह है कि यहां पीले रंग के कछुए के मिलने के बाद लोग इसे भगवान का अवतार मान रहे हैं और इसकी पूजा कर रहे हैं। लोगों का मानना है कि यह कछुआ भगवान विष्णु का अवतार है। वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कछुआ जेनेटिक म्युटेशन की वजह से पीले रंग का पैदा हुआ है।
नेपाल के धनुषा जिले में मिला पीला कछुआ
यह पीले रंग का कछुआ नेपाल ल के धनुषधाम नगर पालिका इलाके में मिला था जोकि नेपाल के धनुषा जिले में है।
इस कछुए की पहचान मिथिला वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ने की थी। इसकी पहचान भारतीय फ्लैप कछुए के तौर पर हुई है। कछुए के बारे में वन्यजीव विशेषज्ञ देवकोटा का कहना है कि इस पीले रंग के कछुए का नेपाल में धार्मिक और सांस्कृतिक रुप से काफी महत्व है, यही वजह है कि लोग इसे भगवान विष्णु का अवतार मान रहे हैं और इसकी पूजा कर रहे हैं।
भगवान विष्णु का अवतार
पीले रंग के कछुए की महत्ता के बारे में देवकोटा ने बताया कि बहुत से लोगों का मानना है कि भगवान विष्णु ने कछुए के रूप में अवतार लिया है ताकि वह इस ब्रम्हांड को खत्म होने से बचा सके। भारत में पौराणिक कथाओ में कछुए को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है और इसे कूर्म रूप से जाना जाता है। पूरे भारत और नेपाल के कई मंदिरों में कछुए की पूजा की जाती है। भारतीय पौराणिक कथा के अनुसार कछुए की उपरी परत आसमान का प्रतीक होती है, जबकि शरीर के नीचे के हिस्से को धरती का प्रतीक माना जाता है।
क्यों हुआ रंग पीला
यह कछुआ पीले रंग का क्यों है, इस सवाल के जवाब में एक्सपर्ट का कहना है कि ऐसा क्रोमेटिक ल्युसिज्म की वजह से हुआ है, जिसके चलते कछुए की परत चमकीली हो जाती है। ल्यूसिज्म शरीर की त्वचा को सफेद, पीला या चित्तिदार या फिर किसी और रंग का बनाने में अहम भूमिका निभाता है। इसकी वजह से जानवरों में कलर पिगमेंटेशन नहीं बनता है और त्वचा का रंग बदल जाता है। यह कुछ ऐसा ही है जैसे इंसानों में सफेद दाग। इंसानो में पिगमेंटेशन की कमी से उनकी
त्वचा पर सफेद रंग के धब्बे बन जाते हैं, जिसे विटिलिगो कहते हैं।
दुनिया में पांचवा ऐसा कछुआ
कमल देवकोटा का कहना है कि नेपाल के इतिहास में ऐसा पहली बार है जब पीले रंग का कछुआ मिला हो। यह दुनियाभर में पांचवा इस तरह का कछुआ है। लिहाजा हम कह सकते हैं कि यह अपने आप में एक विलक्षण खोज है। बता दें कि कमल देवकोटा नेपाल की टॉक्सिनोलोजी एसोसिएशन में काम करते हैं।