कर्मयोगी, परम श्रधेय्य स्मृतिशेष श्री रोशनलाल सक्सेना जी की जयंती, संकलन दिवस के रूप में मनाई गई, संवाद न्यूज डिप्टी हेड अनुपम गुप्ता “स्वामीजी” की रिपोर्ट

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राजनगर- विद्याभारती के द्वारा संचालित, सरस्वती शिशु मंदिर/हाईस्कूल राजनगर में, भारतबर्ष के महान “कर्मयोगी” मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ ही नहीं वरन भारतबर्ष के अनेक प्रांतों में भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत, शिक्षा के क्षेत्र में अलख जगाने वाले क्रांतिदूत, अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाल स्वयंसेवक और मध्यप्रदेश में सरस्वती शिशु मंदिर के जनक परम श्रध्धेय, स्मृतिशेष श्री रोशनलाल जी सक्सेना का जन्म, ०५ अक्टूबर १९३१ को हुआ था। इनके जीवन का उद्देश्य, सांस्क्रतिकरूप से परिपूर्णकर, राष्ट्रभक्त, शिक्षित नागरिक तैयार करना, विद्यालय के आचार्य परिवार, छात्र-छात्राओं के बिषय को लेकर, गहरा चिंतन करके समाज से सहयोग लेकर, बड़े-बड़े विद्यालयों, आवासीय परिसरों को खड़ा करने का कार्य किया। आपके पुरुसार्थ को ध्यान में रखते हुए विद्याभारती ने आज देशभर में श्री रोशनलाल सक्सेना जी की जन्मजयंती को, अर्थसंकलन दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया, इसी के निमित्त स्थानीय विद्यालय, सरस्वती शिशु मंदिर/हाईस्कूल राजनगर में भी कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। कार्यक्रम का शुभारम्भ माँ वीणावादिनी, सरस्वती जी एवं स्मृतिशेष श्री सक्सेना जी के चित्र पर, माल्यार्पण करके, दीप प्रज्ज्वलन, तिलक लगाकर, सरस्वती वंदना के साथ किया गया।


श्रीसक्सेना जी के जन्मदिवस के अवसर पर बात करते हुए- विश्व हिंदू परिषद छतरपुर विभाग के विभागमंत्री, पत्रकार बिकास परिषद के राष्ट्रीय महासचिव, मतंगेश्वर शिक्षा समिति, राजनगर के सम्मानीय व्यबस्थापक महोदय और कार्यक्रम के मुख्यवक्ता श्रीमान अनुपम जी गुप्ता ने, स्मृतिशेष श्री रोशनलाल जी सक्सेना के जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि ०५ अक्टूबर १९३१ को, मध्यप्रदेश के सीधी में जन्मे श्री सक्सेना जी ने स्नातक तक की शिक्षा सीधी में प्राप्त की। रीवा आकर, १९५१ में गणित विषय में एम. एस. सी. की डिग्री ली। विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बाल स्वयंसेवक होने के कारण, रीवा नगर में भी सक्रिय स्वयंसेवक की भूमिका निभाते हुए, गणशिक्षक, मुख्यशिक्षक एवं रीवा नगरकार्यवाह आदि महत्वपूर्ण दायित्वों का निर्वहन करते हुए १९६२, ६३ एवं ६६ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संघ शिक्षावर्ग के तीनों प्रशिक्षण प्राप्त किये। १९५४ से १९६४ तक कृषि महाविद्यालय रीवा में प्राध्यापक के रूप में अध्यापन कार्य किया। १२ फरवरी १९६४ को बसंत पंचमी के शुभमुहूर्त में, रीवा के बैजू धर्मशाला के एक कमरे में, महज ग्यारह छात्रों के साथ, मध्यप्रदेश के प्रथम, सरस्वती शिशुमंदिर की स्थापना की नींव रखी और विद्यालय संचालन समिति का गठन किया। जिसमें आप समिति के सचिव बने तथा १९६४ में ही, प्रोफेसर के पद से इस्तीफा देकर, अपना पूर्ण समय समाज के लिए समर्पित किया। आप रीवा विभाग के विभाग प्रचारक(परमपूज्य कूप. सी. सुदर्शन जी के पश्चात) रहे। प्रचारक रहते हुए भी उन्होंने सरस्वती शिशु मंदिर योजना को, समूचे प्रदेश में वटवृक्ष के रूप में फैलाने के, गुरुतर कार्य किये। धीरे-धीरे समूचे बिंध्यक्षेत्र में १२ सरस्वती शिशु मंदिर स्थापित किये, उसी दौरान प्रांतीय कार्यकारिणी का गठन हुआ, जिसमें श्री सक्सेना जी को १९७४ में प्रांतीय सचिव बनाया गया। इस दौरान आपने मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश एवं दिल्ली आदि प्रांतों में भी अनेक सरस्वती शिशु मंदिरों की नींव रखी। उन्होंने आपातकाल के दौरान भी, निर्बाध गति से विद्यालयों का प्रवास जारी रखा। प्रवास के दौरान ही ३० जुलाई १९७५ को दमोह में, तत्कालीन सरकार ने श्री सक्सेना जी को गिरफ्तारकर, मीसाएक्ट में जेल में डाल दिया। २० जनवरी १९७७ तक लगभग डेढ़ बर्ष तक जेल में रहकर भी सतत, राष्ट्रवाद की अलख जगाते रहे। मुख्यवक्ता श्री अनुपम गुप्त जी ने उन्हें कर्मयोगी बताते हुए कहा कि आपके द्वारा किए गए रचनात्मक कार्यों का विकासपथ कभी रुका नहीं।
भोपाल के केरवा बाँध के पास, सरस्वती शिशु मंदिर के लिए एक बहुत बड़े भूभाग को खरीदने के लिए, जनसहयोग के माध्यम से ०१ महीने के अंदर ही, राशि एकत्रितकर, सरस्वती शिशु मंदिर आवासीय योजना का भी शुभारंभ किया। इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री सुंदरलाल पटवा जी, श्री कैलाश जोशी जी एवं श्री बाबूलाल जी गौर आदि भी, श्री सक्सेना जी से सदैव मार्गदर्शन लेते रहे। श्री भाऊसाहब भुस्कुटे एवं परमपूज्य बालासाहेब जी देवरस के कुशल मार्गदर्शन तथा लज्जाराम जी तोमर जैसे सहयोगियों के चलते सरस्वती शिशु मंदिर का जो अखिल भारतीय स्वरूप हुआ, उसमें श्री रोशनलाल जी सक्सेना की सचिव के रूप में अहम भूमिका, को नकारा नहीं जा सकता।
सरस्वती शिशु मंदिर के कल्पतरु(श्री सक्सेना जी) को यदि २१वीं सदी का मदन मोहन मालवीय कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, यहाँ उल्लेख करना आवश्यक है कि २०११ में इंदौर में ११, १२ एवं १३ नवंबर को आयोजित कार्यक्रम में उनके योगदान के लिए, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के परमपूज्य सरसंघचालक जी के द्वारा उन्हें सम्मानित किया गया। ऐसी तपोमूर्ति, जो कार्यकर्ताओं के लिए अत्यंत सरल, सहज एवं विनम्र होते हुए, साधारण से साधारण कार्यकर्ता के सम्मान का ध्यान रखना, उनका सहज स्वभाव था, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण सक्सेना जी द्वारा आदिवासी क्षेत्र पिपराही में स्थापित, सरस्वती शिशु मंदिर के प्रधानाचार्य श्री ओमप्रकाश जायसवाल जी के विशेषरोग से ग्रसित होने पर, मुख्यमंत्री सहायताकोष से राशि मिलने में देरी होने पर, स्वयं बल्लभभवन पहुँच गए और तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री बाबूलाल जी गौर ने पैर छूकर कहा “बाबूजी आपने क्यों कष्ट किया, मुझे ही बुला लिया होता” तब उन्होंने कहा था “अरे उअ मरि जई तब अपनाकेर सहायता राशि मिली” और तीसरे दिन, हनुमना तहसीलदार ने श्री ओमप्रकाश जयसवाल का पता करते हुए उनके घर जाकर, सहायता राशि का चेक प्रदान किया, इस प्रकार का जीवन था रोशन लाल जी सक्सेना का। आजादी के बाद से ही, राष्ट्र के मनीषियों ने गुलामीयुक्त, लॉर्ड मैकाले की शिक्षा से मुक्ति दिलाने के लिए, भारतीय संस्कृति पर आधारित शिक्षा की कल्पना की थी, जिसके लिए श्री सक्सेना जी ने जीवन आहूत किया और आज भारतबर्ष के यशश्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने उस संकल्प को पूरा करते हुए, राष्ट्रीय शिक्षा नीति(NEP) २०२० को संसद में पारितकर, श्री सक्सेना जी को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम में बरिष्ठ समाजसेवी और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता श्री गणेश पाठक जी ने अपने भोपाल प्रवास के दौरान स्मृतिशेष श्री रोशनलाल जी के सानिध्य और अनुभव को याद किया और विद्यालय को आर्थिक सहयोग से लेकर, हर सम्भव सहयोग करने की बात कही। प्रबंध कार्यकरणी के सम्मानीय सदस्य श्रीमान आनन्द तिवारी जी ने कहा कि “विद्या ददाति विनियम, विनयात पात्रता। पात्रत्वातधनंआप्नोति, धनात् धरम: तत: सुखम्।
अर्थात विद्यादान से बड़ा काम कुछ नहीं है। श्री सक्सेना जी ने शिक्षादान का जो वटवृक्ष, सरस्वती शिशु मंदिर के रूप में खड़ा किया है वह, समूचे राष्ट्र को आलोकित करता रहेगा।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विद्यालय के प्राचार्य श्रीमान हरिनारायण तिवारी जी ने, श्री सक्सेना जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आपका जीवन, प्रत्येक आचार्य परिवार के लिये एक उदाहरण बने, ऐसा प्रयास हम सभी को, उनसे प्रेंरणा लेकर, संकल्प करना चाहिये। सरस्वती शिशु मंदिरों के रूप में राष्ट्र का प्रथम, सरस्वती शिशु मंदिर गोरखपुर में स्थापित किया गया था। श्री तिवारी जी ने, श्री सक्सेना जी को याद करते हुए बताया कि जबलपुर में विश्व संवाद केंद्र में रहते हुए भी उनका स्नेह, सदैव मिला। कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए, श्री प्रतापनारायण मिश्रा ने, श्री सक्सेना जी को याद करते हुए उन्हें, महामानव बताया।


इस अवसर पर भारत सरकार से मान्यता प्राप्त, बरिष्ठ पर्यटक पथप्रदर्शक(गाईड) इतालवी भाषा, श्रीमान रामेश्वर प्रसाद गुप्ता जी ने भी, त्वरित आर्थिक सहयोग प्रदान किया और विदेशी भाषाज्ञान, पर्यटन सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग करने का संकल्प लिया।
कार्यक्रम में मतंगेश्वर शिक्षा समिति के कोषाध्यक्ष श्रीमान महेंद्र जी पटेल, प्रबंध कार्यकारिणी के सदस्य और श्रीमान आनंद जी तिवारी, श्रीमान ओमकार जी अग्निहोत्री, इंजीनियर श्रीमान पुष्पेंद्र जी त्रिवेदी, खजुवा के प्रसिद्ध समाजसेवी श्रीमान बबलू पटेल जी आदि सम्मानीय नागरिक और अभिभावक बन्धु/मातायें उपस्थित रहीं, सभी ने विदयालय के लिये हर सम्भव सहयोग करने का संकल्प लेकर, महामानव को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की। विद्यालय परिवार ने समस्त सम्मानीय अतिथियों का स्वागत/वंदन के पश्चात धन्यवाद ज्ञापित करते हुए, सदैव सहयोग की अपेक्षा की। कार्यक्रम में समस्त आचार्य परिवार व दीदी उपस्थित रहीं।।

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