गुरु सप्तमी पर भागली में विभिन्न कार्यक्रमों के साथ हुआ भव्य आयोजन, झाबुआ से माणक लाल जैन की रिपोर्ट

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भीनमाल । निकटवर्ती गाँव भाँगली सिंधलान में मरुधर पार्श्वनाथ जैन मंदिर प्रांगण में  गुरुवार को गुरु सप्तमी के उपलक्ष में विभिन्न धार्मिक आयोजन के साथ गुरुदेव राजेन्द्र सूरि की जन्म एवं स्वर्गारोहण पर्व  हर्षोल्लास के साथ मनाया गया  ।

       
मीडिया प्रभारी माणकमल भंडारी ने बताया कि दादा गुरुदेव राजेन्द्र सूरीश्वर म.सा. का जन्म एवं स्वर्गारोहण गुरु सप्तमी का आयोजन राष्ट्रसंत आचार्य लेखेन्द्र सूरीश्वर म.सा. की पावन निश्रा में मनाया गया । इस अवसर पर मुनीराज ललितेश विजय, मुनीराज मृगेंद्र विजय, साध्वी अनंतगुणा, साध्वी अक्षयगुणा, साध्वी समकितगुणा एवं साध्वी भावितगुणा की उपस्थिति भी रही । गुरु सप्तमी के उपलक्ष्य में गुरुवार को प्रातः 8 बजे पूजा के चढ़ावे, 10 बजे भव्य रथ यात्रा, 11 बजे गुरू गुणानुवाद सभा एवं महामांगलिक, 12 बजे स्वामीवात्सल्य,  2 बजे गुरुपद महापूजन तथा शाम 7 बजे महा आरती एवं गुरु भक्ति का आयोजन किया गया । मीडिया प्रभारी माणक मल भंडारी ने बताया कि सम्पूर्ण गुरु सप्तमी मेले के लाभार्थी बाकरा निवासी दिलीपकुमार, विनोदकुमार, पारसमल सालेचा रहे ।  आचार्य लेखेन्द्रसूरीशवर म सा ने गुरु राजेन्द्र के गुण गाण करते हुए कहा कि आज ही के दिन विक्रम संवत 1883 की पौष सुदी सप्तमी गुरुवार के दिन भरतपुर नगर में  ॠषभदास पारेख के घर रत्नराज नामक एक बालक का जन्म हुआ । जिसने आगे चलकर अपने जप, तप, त्याग और संयम के बलबूते पर जिन शासन की महानतम विभूतियों में स्थान प्राप्त कर अपना नाम सदा के लिए अमर कर दिया । उसी महापुरुष को हम आज दादा गुरु राजेंद्र सूरीश्वर के नाम से याद कर रहे हैं। दादा गुरुदेव की माता का नाम केसरबाई था। उस समय उनके छोटे-छोटे राज्यों में बंटे भारत के राजस्थान, गुजरात, मारवाड़ ,मेवाड़, मालवा आदि कई प्रांतों के राजा महाराजा बादशाह व नवाबों को अपने तपोबल से प्रभावित कर जन उपयोगी कार्य करने में राजेंद्र सूरीश्वर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन्होंने जन चेतना जगाते हुए भारतीय जीवन की प्रद्धति व संस्कृति को अजर अमर बनाने के लिए तपोबल का शंखनाद किया। उन्होंने बाल्यावस्था में अपने सांसारिक के नाम रत्नराज नाम से शिक्षा प्राप्त की। बुद्धि चातुर्य व परख करने की कला हासिल कर अपने बड़े भाई माणिक चंद के साथ द्रव्योपार्जन करने की अनुमति लेकर कोलकाता बंगाल होते हुए सिंहल द्वीप श्रीलंका जा पहुंचे । जहां वे  रत्न परीक्षक के रूप में विख्यात हुऐ। विक्रम 1945-46 के दौरान प्रमोदसूरिशवर के प्रवचन का श्रवण करने पर उनमें वैराग्य कृति प्रज्वलित हुई और हेमविजय के करकमलों द्वारा उदयपुर में दीक्षा ली । इसके बाद उनकी आध्यात्मिक यात्रा जीवन पर्यंत निबद्धि गति से जारी रही। उन्होंने अपने जीवन में कुल 64 ग्रंथों की रचना करते हुए अपने सबसे विलक्षण व अनोखी रचना अभियान राजेंद्र कोष को पूरे विश्व में प्रशंसनीय सिद्ध  कर दिया‌। लगभग दस हजार पत्रों वाले इस सप्तकोशी ग्रथ में संस्कृत प्राकृत भाषा में संपूर्ण अर्थ के साथ रचे गए। जिनके लिए विश्वभर के विद्वानों ने इस ग्रंथ की प्रशंसा कर इसे विश्वकोष की उपमा से अलंकृत किया।

       इस अवसर पर अतिथि सिरोही विधायक संयम लोढा, भीनमाल नगरपालिका अध्यक्ष विमला बोहरा, कांग्रेस नेता सुरेश बोहरा, पूर्व राज्य मंत्री गोपाराम का ट्रस्ट मंडल द्वारा स्वागत किया गया । आचार्य लेखेन्द्रसूरीशवर म सा का जन्म दिन मनाने के लिए पाली में जैन संघ को अनुमति प्रदान की । इसी प्रकार जावाल में मोहनलाल अम्बालाल जैन के यहां जीवित महोत्सव मनाने के लिए मुहर्रत प्रदान किया गया । 

        इस अवसर पर रमेश बोहरा, धनराज जैन, मीठालाल  रेड, प्रकाशचंद वडेरा, दिलीपकुमार सालेचा, महावीरकुमार, सुरेन्द्र मेहता, मोहनलाल, मदनलाल भंडारी, जगदीश गांधी, ललित नैनगोता,  गुमानमल धोकड़, माणकमल भंडारी, शैलेष कोठारी, कपूरचंद सहित कई लोग उपस्थित थे ।

माणक लाल जैन,पत्रकार झाबुआ

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