झाबुआ जिले के मजदूर महाराष्ट्र में बने बंधक दलालों के द्वारा ले जाया गया था मजदूरी के लिए,झाबुआ से संवाद न्यूज ब्यूरो माणक लाल जैन की रिपोर्ट

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पेटलावाद। झाबुआ जैसे आदिवासी बाहुल्य जिले के मेहनतकश मजदूर आज भी पलायन का दंश झेल रहे हैं सरकारे लाख दावा करे परंतु स्थानीय स्तर पर सरकारी रोजगार सरकारी काम देने के तमाम सरकार के दावे खोखले साबित होते दिखाई दे रहे हैं। लॉकडाउन के समय तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ संदीप शर्मा ने झाबुआ जिले की सभी पंचायतों को मिलाकर एक लाख मजदूरों को मजदूरी देने का जो दावा किया था वह भी मात्र अखबार और मीडिया की सुर्खियां बटोरने के सिवा और कुछ ना था जिस तरह से संदीप शर्मा ने दावा किया था 1 लाख मजदूरों को रोजगार देने का वह सिर्फ कागजों में ही सिमट कर रह गया है और इसकी आड़ में सरकारी कामों में मजदूरों की जगह खूब मशीनों से सरकारी कामकाज तालाब सड़क आदि कामों को अंजाम दिया गया जिसका नतीजा संदीप शर्मा को जनप्रतिनिधियों के विरोध का सामना करना पड़ा और जिले से शर्मा की रवानगी हो गई जिले के मजदूरों को स्थानीय स्तर पर मजदूरी नहीं मिलने के कारण जिले से भारी संख्या मैं अन्य राज्यों में पलायन होने को मजबूर होना पड़ता है जिसका खामियाजा जिले के मजदूर किस तरह चुकाते होंगे इसका अंदाजा शायद जिले के अधिकारियों को भी नहीं होगा आइए हम आपको बताते हैं कि जिले के मजदूर किस तरह से दलालों के षड्यंत्र का शिकार हुए और आज बंधक बनकर मजदूरी करने को मजबूर है जैसे तैसे अपनी आपबीती फोन के जरिए अपने घर परिवार वालों को सुनाई जिसके बाद परिजन एकत्रित होकर बामनिया चौकी पर परिवार को बचाने की गुहार लगाते हुए एक आवेदन दिया था जिस पर बामनिया चौकी प्रभारी ने कुछ लोगों से संपर्क करने की भी कोशिश की परंतु उनका मोबाइल बंद होने के कारण उनका संपर्क नहीं हो पाया

पूरा मामला इस प्रकार है ग्राम पंचायत चापानेर चौकी बामनिया थाना पेटलावद और राजस्व तहसील थांदला है के तकरीबन 55 मजदूर दलाल राम सिंह रघुनाथ राजपूत निवासी तनोज जिला उज्जैन ,दूसरा दलाल पप्पू नामक व्यक्ति भोपाल, तीसरा दलाल खंडवा का नवाब बताया जा रहा है , इन तीनों ने मिलकर चापानेर के 55 मजदूरों को रतलाम से महाराष्ट्र लग्जरी बस के माध्यम से पहुंचाया महाराष्ट्र के गांव शाकुंन, तहसील दारुल जिला बीड़ राज्य महाराष्ट्र मैं मूसा इब्राहिम के खेतों पर गन्ने काटने का और गाड़ियां भरने का काम मिला जो कि सुबह से लेकर देर रात तक 12:00 से 2:00 बजे तक मजदूरों से काम लिया जाता था जिसके पश्चात 55 मजदूरों को तीन टुकड़ों में अलग-अलग बांट दिया गया कुछ को कर्नाटका भेज दिया गया इस तरह से सभी मजदूरों को अलग अलग रखकर काम लिया जा रहा था काम भी इतना ज्यादा था कि मजदूरी कम लग रही थी सुबह से लेकर देर रात तक काम लिया जा रहा था खाने पीने की कोई व्यवस्था नहीं थी यहां तक घर परिवार से बातचीत करने के लिए मोबाइल भी छीन लिए गए थे और जितने दिन काम किया पैसा मांगने पर यह कहा गया कि हमने तुम्हारे दलालों को ₹ 6 लाख मजदूरी के एवज में दिए हैं जब तक पूरे नहीं होंगे यहां से तुम लोग नहीं जा सकते मजदूर वर्ग काफी भयभीत हो गए थे मुकेश नामक मजदूर ने अपनी आपबीती फोन पर जैसे तैसे अपने परिवार को सुनाई गई थी घटना की जैसे ही जानकारी मूसा इब्राहिम के भाई ख्वाजा को लगी ख्वाजा ने मुकेश के साथ मारपीट की गई थी जिससे परिवार से संपर्क भी नहीं कर पा रहे थे यहां तक मजदूरों को बंधक बना कर काम लिया जाता है । मजदूरी के नाम पर बंधक बने मजदूर जैसे तैसे अपनी जान बचाकर कर्णाटक से खेत खेत में भागते हुए अपने जिले झाबुआ पहुंचे हैं पहुंचने के पश्चात वे चोकी पर पहुंचकर पूरी घटना क्रम बताया गया परंतु आज भी कुछ मजदूर महाराष्ट्र मैं है न जाने किस हाल में होंगे क्योंकि उनसे कोई संपर्क भी नहीं हो पा रहा है

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