पन्ना के भगवान श्री  जुगल किशोर जू सरकार के बारे में जाने कुछ अहम बाते। कैसे स्वयं प्रकट हुई थी पन्ना के जुगल किशोर जू की मूर्ति ?-लेखक एवं प्रस्तुति -नवीन खरे ( विष्नु )शारदा विला- पन्ना(म.प्र.)

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जब श्री जुगल किशोर सरकार – श्री रामराजा सरकार के लिए ओरछा छोड़ कर पन्ना चले गए थे ?

पन्ना के भगवान श्री श्री 1008 श्री जुगल किशोर जू सरकार के पन्ना में मंदिर के निर्माण का इतिहास?

कैसे स्वयं प्रकट हुई थी पन्ना के जुगल किशोर जू की मूर्ति ।

                                एक बार प्रसिद्ध संत विशाखा सखी अवतार स्वामी श्री हरिराम व्यास जी के स्वप्न में ठाकुर जी (भगवान कृष्ण) आए और वह कहने लगे कि मुझे इस कुएं से निकालो और स्थापित करो तब श्री हरिराम व्यास जी ने जुगल किशोर जी को कुए से निकालकर मंदिर में स्थापित किया ।

                                  भगवान जुगलकिशोर की यह मूर्ति हरिराम व्यास जी को वि. सं 1620 (1563 ई.) की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली ।  व्यास जी ने उस प्रतिमा को वही प्रतिष्ठित किया। बाद मे ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया। 

                                            यहाँ भगवान जुगलकिशोर जी अनेक वर्षो तक विराजे पर मुगलिया हमले के समय उनके भक्त उन्हें ओरछा के पास पन्ना ले गए । ठाकुर जी आज भी पन्ना के पुराने जुगलकिशोर मंदिर मे दर्शन दे रहे है ।

जब श्री जुगल किशोर सरकार – श्री रामराजा सरकार के लिए ओरछा छोड़ कर पन्ना चले गए थे |

                            जुगल किशोर मंदिर संपूर्ण देश में अनूठा है। यहां राधा कृष्ण की जोड़ी के अनुपम दर्शन होते हैं। कहा जाता है कि श्रीकृष्ण की मुरलिया में बेशकीमती हीरे जड़े गए थे। जिसको लेकर सैकड़ों साल से यह भजन गाया जाया रहा है। पन्ना के जुगल किशोर मुरलिया में हीरा जड़े…।

 मन्दिर का निर्माण 1756 ई. में तत्कालीन पन्ना नरेश हिन्दूपत जी द्वारा कराया गया था। कहा जाता है कि राधा कृष्ण की यह जोड़ी ओरछा से यहां आई थी। समूचे बुंदलेखंड में यह मंदिर कृष्ण भक्तों की आस्था का केंद्र है। इसे बुंदेलखंड के वृंदावन की संज्ञा दी जाती है। यहां जन्माष्टमी पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। 

रामभक्त रानी को कृष्णभक्ति रास नहीं आई:

यहां विराजमान श्रीराधा कृष्ण की जोड़ी को ही जुगल किशोर या युगल किशोर कहा जाता है। एक जनश्रुति के मुताबिक भगवान श्रीकृष्ण पहले ओरछा राज्य में निवास करते थे और बाद में यहां विराजमान हुए। जनश्रुति के अनुसार ओरछा राज्य के राजा मधुकर शाह और उनकी प्रजा श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थी। भगवान जुगल किशोर वहां के राजा के गुरु पंडित हरिराम व्यास के भक्तिबंधन में बंधकर वृंदावन छोड़कर ओरछा आए थे। कृष्ण भक्ति में राजा और प्रजा इस कदर डूबी कि राजदरबार में रासलीला का आयोजन होने लगा। कहा जाता है कि महारानी कुंवर गनेशी को राजा का इस रूप से भक्तिभाव में डूबना रास नहीं आया वे राज्य की सुरक्षा को लेकर भी चिंतित हो उठीं। 

रामराजा सरकार के लिए जुगलकिशोर सरकार ने ओरछा छोड़ा:

महारानी भगवान श्रीराम की भक्त थीं। भक्ति के तौर तरीकों और अपने आराध्य को लेकर महाराज और महारानी में ठन गई और महारानी कुंवर गनेशी ने यह प्रतिज्ञा की कि वे अपने आराध्य रामराजा को लेकर ही ओरछा वापस आएंगी, पर साथ ही यह विशेष शर्त भी तय हुई कि तब राज्य में एक ही राजा की सरकार रहेगी अर्थात रामाराजा सरकार या श्री जुगल किशोर सरकार।  महाराज ने इसे स्वयं की सरकार या रामराजा की सरकार के अर्थ में लिया। जब महारानी भगवान श्रीराम को अयोध्या से ओरछा लेकर आईं तो महाराज ने नए राजा को राज्य सौंपने के लिये अपनी राजधानी टीकमगढ़ स्थानांतरित कर दी। पर असल शर्त तो आराध्य देव रूपी राजा को लेकर थी। जिस पर जुगल किशोर सरकार को उनकी प्रेरणा से गोविंद दीक्षित कालांतर में  पन्ना ले आए। यहां आने पर उन्हें विंध्यवासिनी मंदिर में अस्थाई रूप से रहना पड़ा और फिर स्थाई रूप से जहां विराजे, उसे आज जुगल किशोर मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर भवन निर्माण की बुंदेली छाप लिए उत्तर मध्यकालीन वास्तुशिल्प के अनुरूप निर्मित है।

प्रत्येक अमावस्या पर विशेष दर्शन:

समुचे बुन्देलखण्ड के वासियों के लिए भगवान युगल किशोर का पवित्र मंदिर आस्था का केन्द्र है। प्रत्येक अमावस्या के दिन समूचे बुन्देलखण्ड से श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने आते है।  ऐसी मान्यता है कि अमावस्या के दिन यहां जुगल किशोर सरकार से मांगने पर हर मनोकामना पूरी होती है। यह भी जनमान्यता है कि चारों धाम की यात्रा की हो या किसी भी तीर्थ स्थल की यात्रा लौटकर यहां हाजिरी न दी तो सब निष्फल होता है।

पन्ना के भगवान श्री श्री 1008 श्री जुगल किशोर जू सरकार के पन्ना में मंदिर के निर्माण का इतिहास:

बुंदेलखंड के पन्ना (मध्यप्रदेश) के श्री श्री 1008 श्री भगवान जुगल किशोर जू के मंदिर मैं 11 तोपों की सलामी के साथ भगवान श्रीकृष्ण (मुरलीमनोहर) का जन्मोत्सव मनाया जाता है। 

कहा जाता है कि कारागार में देवकी की कोख से जन्म लेते है तो विष्णुस्वरूप वैकुंठवासी कृष्ण होते हैं और फिर ब्रज तक पहुंचते समय गोकुलवासी कहलाते हैं और जब वे अपनी बाल लीलाएं दिखाकर मां को रिझाते-चिढ़ाते हैं और फिर दुष्टों का निहत्थे संहार करते है तो पूर्ण ब्रह्मस्वरूप हो जाते हैं। 

बुंदेलखंड की रियासत के रूप में इस नगर को बुंदेला नरेश महाराजा छत्रसाल ने औरंगजेब की मृत्यु (1707 ई.) के पश्चात् अपने राज्य की राजधानी बनाया। मुगल सम्राट बहादुरशाह ने (1708 ई.) में महाराजा छत्रसाल की सत्ता को मान लिया। बुंदेलखंड के प्रसिद्ध श्री जुगलकिशोर मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण का अष्टसिद्ध सालिगराम की मूर्ति है। 

यह पुराणेतिहासिक नगर है, जिसका उल्लेख विष्णुपुराण और पद्मपुराण में किलकिल प्रदेश से आता है, जो वाकाटक वंश की उत्पत्ति स्थल है। नागवंश की कुलदेवी पद्मावती किलकिला नदी के किनारे पर विराज रही हैं इसके कारण इसका नाम पद्मा और बाद में परना झिरना और पन्ना हुआ। 
आस्था के केंद्र पन्ना के जुगल किशोर जू मंदिर का निर्माण  वि. संवत् 1813 (1756 ई.) में तत्कालीन पन्ना नरेश महाराज हिंदूपत द्वारा कराया गया था। जहां गर्भगृह में प्रतिष्ठित श्रीकृष्ण-राधा को जुगल जोड़ी के दर्शन करने दूर-दूर से प्रतिदिन हजारो श्रद्धालु पहुंचते हैं। 

राधाकृष्ण की यह जुगल जोड़ी ओरछा राज्य से होती हुई यहां आई थी तभी से श्रीकृष्ण और राधा की नयनाभिराम छवि श्रद्धालुओं को अपने मोहपाश में बांधे हुए है। नगर के धार्मिक जीवन का यह मंदिर केंद्रबिंदु है। 

भगवान जुगलकिशोर की मूर्ति हरिराम व्यास को वि. संवत् 1620 (1563 ई.) की माघ शुक्ल एकादशी को वृंदावन के किशोरवन नामक स्थान पर मिली। व्यास जी ने प्रतिमा को उसी स्थान पर प्रतिष्ठित किया। बाद में ओरछा के राजा मधुकर शाह ने किशोरवन के पास मंदिर बनवाया। इस मंदिर में भगवान श्री जुगलकिशोर जी अनेक वर्षों तक विराजे पर मुगलिया हमले के समय उनके भक्त उन्हें ओरछा के पास पन्ना ले गए। 
आज भी ठाकुर जी पन्ना के पुराने जुगलकिशोर मंदिर में दर्शन दे रहे है।
ऐसी मान्यता है कि अमावस्या के दिन यहां जुगल किशोर सरकार से मांगने पर हर मनोकामना पूरी होती है। 
चारों धाम की यात्रा की हो या किसी भी तीर्थस्थल की लौटकर यहां हाजिरी न दी तो सब निष्फल है।

नवीन खरे ( विष्नु ),प्रस्तुतकर्ता, शारदा विला-पन्ना

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